WELCOME TO RAM JANMBHOOMI

यही वह स्थान है जहाँ आज से 87-640 वर्ष पूर्व श्री रामचन्द्रजी ने जन्म लिया था | आज से 2040 वर्ष पूर्व महाराज विक्रमादित्य ने इस स्थान पर एक बहुत बड़ा सुन्दर मन्दिर बनवाया था| अनन्तर उसकी मरम्मत कन्नौज के राजाजयचन्द्र ने करवाई थी| खिलजी तथा तुगलक वंशीय शासकों की निर्बलता के कारण जौनपुर में एक नये राज्य का उदय हुआ, जिसे शर्की राज्य के नाम से पुकारा जाता है शर्की राज्य का पश्चिमी विस्तार सम्पूर्ण वर्तमान अवध तक था| सन 1526 ई. में दिल्ली पर सिंहासन रूढ़ होने के पश्चात शाहबाबर ने शर्की राज्य को स्वाधीन करने के विचार से उस पर आक्रमण किया| शर्की सुल्तान ने डटकर मोर्चा लिया| बाबर ने अयोध्या से 3-4 कोस पूर्व सेरवा और घाघरा के संगम के पास अपना रण शिविर बनाया| 7-8 दिन तक संग्राम होने के पश्चात बाबर की विजय हुई| अपने विजयोल्लास में प्रमत्त बाबर ने धार्मिक भावना की जिज्ञासा तृप्ति की कामना की और मंत्रियों से सलाह लेने के बाद आयोध्यस्थ सिद्ध फकीर फजल अब्बास कलन्दर की शरण में गया और उनसे धार्मिक उपदेश सुनाने की प्रार्थना की| उस समय बाबर के साथ उसका प्रधान रणमंत्री मीरबांकी भी था उपदेश सुनकर बाबर बहुत प्रभावित हुआ| उसने बहुत सा कीमती समान फकीर को भेंट में दिया| सम्राट बाबर पर अपनी सिद्धि का प्रभाव डालने के अभिप्राय से फजल अब्बास ने उस सामान को जलती हुई धूनी में दाल दिया|

बाबर जब अपने शिविर में गया तो उन सामानों को पूर्ववत अपने यथा स्थान पर सुरक्षित एवं सुसज्जित देखा तो उसे बड़ा ही अचम्भा हुआ| उसने उस मुसलमान सिद्ध के निवास स्थान पर मुस्लिम आराधना भवन (मस्जिद) निर्माण कराने की इच्छा प्रकट की फजल अब्बास ने अपनी धर्मान्ध भावना की पूर्ति का अच्छा मौका समझकर बाबर को धन्यवाद दिया और कहा- मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनवाना मेरे उसूल के खिलाफ है| इस पर वह फकीर उग्र हो उठा और बोला

मैं यह मन्दिर तोड़कर ही मस्जिद बनवाना चाहता हूँ| तू यदि न मानेगा तो मैं तुझे बददुआ दूँगा, तुझे फतवा दूँगा और तेरी सल्तनत पर कहर नाजिल करूँगा| तुझे क्या पता की इस पाक जमीन पर (जन्मभूमि पर) अदा की गई एक नमाज खुदा के सामने हजार नमाज के बराबर कबूल होती है| अन्तोगत्वा बाबर अपने मन्त्री मीरबाँकी ताशकंदी को जन्मभूमि का मन्दिर तोड़कर उस जगह एक सुन्दर मस्जिद निर्माण करने की आज्ञा देकर दिल्ली लौट गया| यह संवाद विशाल हिन्दु जनता में विशाक्त बाणों के पावक प्रवाह की भाँति क्षणमात्र में व्याप्त हो गया मीरबाँकी ने अपने सेना के साथ परम पवित्र जन्मभूमि पर आक्रमण किया शस्त्रहीन हिन्दुओं ने प्राणपण से लोहा लिया और 17 दिनों तक लड़ाई लड़ी, किन्तु रण-पटु मुगलों के खड्ग धर के सम्मुख ठहर न सके|

मीरबाँकी मन्दिर के द्वार अन्तरगृह में प्रवेश करना चाहा| श्रीरामजन्मभूमि के ब्राह्मण पुजारी पण्डित श्यामानंदजी ने अपने परिवार के साथ डटकर उसका मुकाबला किया किन्तु मीरबाँकी की फौज ने उन्हें धराशायी कर दिया| आर्य रक्त रंजित विजयश्री समेत मीरबाँकी गर्भभवन में प्रवेश कर गया, किन्तु वहाँ श्रीनिवास भगवान राम पहले ही अंतर्ध्यान हो गये| मीरबाँकी पछता कर रह गया उसे गाजी मूर्ति भञ्जक की उपाधि प्राप्त न हो सकी मन्दिर सर्वांग धराशाही किया गया यह नहीं या तो विवादग्रस्त है किन्तु उसे मस्जिद का प्रकट रूप दिया गया यह सर्वमान्य है| श्रीनिवास भगवान राम की वहीं मूर्ति कालान्तर में श्री सरयू जी के अन्दर से एक ब्राह्मण को प्राप्त हुई थी जो अब कालेराम मन्दिर नागेश्वरनाथ के पीछे विराजमान है| यह बही प्राचीन मूर्ति है जिसे विक्रमादित्य निर्माण कराये मन्दिर जन्मभूमि में प्रतिष्ठित कराया था| सुना जाता है कि जिस समय फजल अब्बास साहब जिन्दा थे और अयोध्या में उनकी सिद्धता का डंका बज रहा था उस समय प्रयाग के महासन्त स्वामी श्री देव मुरारीजी ने अपने प्रिय शिष्य श्री गूदड़ बाबा को उनको शास्त्रार्थ करके उन्हें परास्त करने के लिए अयोध्या भेजा| गूदड़बाबा का आगमन सुनकर फजल अब्बास उनसे मिलने के लिए अपने शेर पर (उसके पास पालतू शेर था) सवर होकर उनके पास गया|

श्री गूदड़ बाबा भी सिद्ध सन्त थे| उन्होने अपने कमण्डल से जल लेकर शेर कि ओर फेंक दिया| शेर फजल अब्बास को लिए हुए बड़ी ज़ोर से दक्षिण कि ओर भागा और कुछ दूर पर उन्हें पटक कर उनका गला दबोच लिया| पीछे से गूदड़ बाबा भी वहाँ जा पहुंचे फजल अब्बास ने उनसे क्षमा मांगी| सन्त गूदड़दासजी ने उन्हें क्षमा कर दिया शेर को बड़ी ज़ोर से डाँटा| शेर सरयू कि माँझा की ओर भाग गया शेर के दांतों ने फजल अब्बास के गले की श्वास नली को फाड़ दिया था जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई| इस घटना से अयोध्या के मुसलमान बड़े प्रभावित हुए| मुख्यतः मूसा आसिकान (अब्बास कलन्दर के शिष्य) पर तो इस घटना का विशेष प्रभाव पड़ा (फजल अब्बास की लाश को वहीं दफन कर दिया गया|) फजल अब्बास की कब्र वर्तमान वशिष्ठ कुण्ड के समीप में बनी हुई है| विक्रमादित्य के बनवाये हुए रामजन्म भूमि मन्दिर के नील प्रस्तर स्तम्भों में से 12 बाबरी मस्जिद के भीतरी कक्ष में और दो बारह सिंह द्वारा पर वर्णन दे रहे है| 6 स्तम्भ फजल अब्बास कलन्दर की कब्र के नीचे बिछा दिये गये हैं| उनकी कब्र के सिराहने गाड़ दिये गए हैं और शेष लन्दन के म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहे हैं| सन्त गूदड़ बाबा (जन्म स्थान वाले) के द्वारा मुसलमानों से सन्धि करके निर्मोहि अखाड़े ले प्रथम सन्त श्री गोविंद रामदासजी ने बाबरी मस्जिद के हाते में ही छोटे चबूतरे पर खस की पट्टियों से घेरकर स्मारक स्वरूप श्रीराम जन्मभूमि का जो मन्दिर बनवाया था| वह आज भी मौजूद है| यात्री लोग इसी जन्मभूमि के स्मारक भवन का दर्शन करके अपने को धन्य मानते हैं| चैत्र शुक्ल नवमी (राम नवमी के दिन जो प्राणी विधिवत व्रत करके श्रीरामजन्मभूमि का दर्शन करता है और बालक बालिकाओं को उत्तम मिष्ठान भोजन कराता है वो परम पद का भागी होता है|) श्री रामजन्मभूमि पर बनी इस बाबरी मस्जिद को प्राप्त करने के लिये हिन्दुओं की ओर से बराबर की चेष्टाएँ होती रही अनेक बार संग्राम भी हुए| सन 1764 ई. में नवाब सआदत अली जंग के समय संग्राम होते-होते बचा| राम के भक्त अपने भगवान की जन्मभूमि पर आराधना के हेतु नित्य जाते रहे| हिन्दुओं की आराधना पद्धति पर सन 1885 ई. में मुसलमानों की राहु दृष्टि पुनः पड़ी| श्री हनुमानगढ़ी मन्दिर से भोजन पाने वाले मुसलमान फकीर गुलाब हुसैनी ने अपने मुसलमान भाइयों को जिहाद की घोषणा करके जन्मभूमि के इस शिशु कुटीर को नष्ट करने के लिए उत्तेजित किया| हिन्दुओं ने भी रणवाद्य बजाया शंख ध्वनि सुनकर मुस्लिम बल मस्जिद में जा छिपा| उस समय लखनऊ में राज्य प्रबन्ध संभालने के लिए अंग्रेज कर्मचारी रहते थे| इस उपद्रव को शान्त करने के लिए वहाँ से श्रीयुत आन्ट साहब व जान साहब भेजे गये| दोनों महानुभावों ने हिन्दू मुसलमान दोनों को झगड़ा करने से मना किया| हिन्दू तो मान गये किन्तु मुसलमान किसी भी तरह नहीं माने| इस पर आन्ट साहब व जान साहब ने कहा अच्छा तो तुम लोग आपस में लड़ कर फैसला कर ही लो| अंग्रेजों की जैसी नीति थी उसके अनुसार आन्ट और जान साहब ने दोनों को ललकार कर दाढ़ी चोटी सम्मेलन करा दिया| फलतः राम-रहीम का युद्ध हुआ, जिसमें हिन्दुओं ने वीरता पूर्वक मुसलमानों को परास्त किया| कुछ समय बाद अयोध्या और फैजाबाद के मुसलमानों ने नवाब वाजिद अली शाह की सेवा में प्रार्थना की कि बाबरी मस्जिद के निकट भगवान कि रामजन्मभूमि वाली फूस की कुटिया है| वह वहाँ से हटवा दी जाये| कुशल नवाब ने यहाँ की मठाधीशों और अंग्रेजी रेजीडेन्ट से परामर्श करके उस कुटी को यथा पूर्व अक्षूण्ण होने का आदेश दे दिया| इसपर लार्ड डलहोजी ने अपने रिपोर्ट में नवाब की बुद्धि की भूरि-भूरि प्रशंसा की| नवाब के इस व्यवहार पर कुछ मुसलमान उन पर बहुत ही क्रुद्ध हुए| अमेठी के मीर मौलवी अमीर अली ने उनका नेतृत्व किया| वह एक उद्दंड दल लेकर अयोध्या की ओर चल पड़ा किन्तु रौनाही के पास भीटीके राज पुत्र श्रीजयदत सिंह ने अपनी फौज की सहायता से उन्हें काट डाला| सन 1947 में भारत पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गया तो उसके दो वर्ष बाद तारीख 22 दिसम्बर 1949 ई. की पुनीत रात्रि में भगवान राम भी अयोध्या स्थित अपने प्राचीन जन्म स्थान की पवित्र भूमि पर सिंहासन पर विराजमान प्रकट हो गये| मानवीय दृष्टि उन्हें न देख सकी देवताओं ने मंगल वाद्य बजाया और सुरांगनाओं ने भव्य आरती उतारी| यह सम्पूर्ण दृश्य स्वप्न रूप से सकल अवधवासी अपने तन्द्रावस्था में देख रहे थे | मंगलमयी उषा का विहान हुआ| दिनकर के करों ने वह सुखद संवाद वैष्णव जगत में प्रसारित कर दिया| स्थान-स्थान पर नियुक्त सरकारी अधिकारियों को यह सब मर्म दैवीय घटना सी प्रतीत हुई| श्री रामजन्मभूमि हिन्दुओं की है| उस पर आज से नहीं त्रेता युग से हिन्दुओं का अधिकार चला आता है| यदि बीच में मुगल शासन काल में बाबर ने महाराज विक्रमादित्य के बनवाये हुये श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर को गिरवा कर (तोड़कर) उस स्थान पर मस्जिद बनवा दिया तो यह उसकी ज्यादती और हिन्दुओं के प्रति सरासर अन्याय था|

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