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प्राचीन मन्दिर

कनक भवन

यह रानी कैकेयी जी का पूरा स्वर्ण महल था। जिसे उन्होने श्री जानकी जी की मुँह दिखाई में दे दिया था | यह श्री राम जानकी का विशेष महल है। साधुओं में विशेषकर रसिक सम्प्रदाय के संतों में इस स्थान के प्रति अपूर्व निष्ठा है यहां कोई न कोई अदभूत घटना प्रायः घटित हुआ करती है | विक्रमादित्य के बनवाए हुए विशाल भवन 'कनक भवन' को जब सैयद मसऊद सालार गाजी ने तोड़ डाला तब से यह स्थान भग्नावस्था में पड़ा था | इसे टीकमगड़ की महारानी श्रीवृषभानु कुँवर ने एक सुंदर विशाल भवन के रूप में बनवा दिया है जो वर्तमान में मौजूद है |
द्वापर के आरम्भ में महाराज कुश ने इसकी सविशेष रूप से अंतरण किया फिर मध्य द्वापर में महाराज ऋषभ ने संस्करण किया |
भगवान श्रीकृष्ण चन्द्रजी ने गति कलि 614 में सानुराग अयोध्या की यात्रा की | उनके साथ महारानी रुक्मणीजी भी अयोध्या पधारी थी | महाराज विक्रमादित्य ने युधिष्ठिर संवत 431 में इसका आयोजन अटेन संगठन और युग निर्माण किया महाराज समुद्रगुप्त ने विक्रम संवत 444 में इसका जीर्णोंद्धार किया |

सुमित्रा भवन

श्री राम के जन्म स्थान के दक्षिण की ओर सुमित्रा भवन नामक स्थान है। इस पर रानी सुमित्रा देवी के गर्भ से श्री लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। हिजरी वर्ष 724 में इस स्थान पर महाराजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया एक महल था। जो बाबर के हमले में नष्ट हो गया था। इस स्थान पर सुमित्रा भवन लिखा हुआ एक पत्थर गड़ा है |

हनुमानगढ़ी (हनुमान जी का मंदिर)

महाराज विक्रमादित्य का बनवाया हुआ श्री हनुमान जी का प्राचीन मन्दिर जब विनष्ट हो गया तो उस स्थान को लोग हनुमान टीला कहने लगे | लखनऊ के नवाब मसूर अली खां सफदर जंग साहब के शासनकाल में बाबा अभय रामदासजी त्यागी नामक एक महात्मा वहाँ कुटी बनाकर निवास करते थे | वे बड़े सिद्ध संत थे | कहते हैं की उन्हें हनुमान जी ने साक्षात दर्शन दिया था |
एक बार नवाब मंसूरअली साहब सख्त बीमार पड़े | बड़े-बड़े हकीम और वैद्यों की दवा की गई फायदा न हुआ सैकड़ों मुसलमान फकीरों की दुआ ताबीज आई कोई फायदा न हुआ तब महाराज टिकैतराय के द्वारा नवाब साहब ने महात्मा अभयराम दासजी को बुलवाया |
महात्मा जी ने हनुमान जी का नाम लेकर कोई दवा उन्हें खाने को दी | उस दवा को खाने से नवाब साहब अच्छे हो गए | प्रत्युपकार में नवाब साहब ने यह हनुमान जी का मन्दिर (हनुमानगढ़ी) बनवा दिया |
वह मन्दिर टिकैतराय की 1 अध्यक्षता में बनवाया गया | हनुमानगढ़ी में 4 पट्टियाँ हैं | हरद्वारी, बसतिया, उज्जैनियां 1 टिकैत नगर (जिला बाराबंकी वाले) और सगरिया | चारों पट्टियों के अलग-अलग चार महन्त हैं और चारों महंतों के ऊपर एक बड़े महन्त है जिन्हें लोग गद्दीनशीन कहते हैं | हनुमानगढ़ी में लगभग 5000 साधु निवास करते हैं जिन्हें मन्दिर की आय (बढ़ोत्तरी) में से कच्चा भोजन आटा, चावल, दाल, लकड़ी आदि तथा एकादशी के दिन प्रति व्यक्ति दो रुपया फलहार के निमित्त दिया जाता है | हरद्वारी के महन्त श्री मुरली दास जी हैं |

श्री आनंद भवन

इस स्थान पर भगवान 'राम' का बालपन व्यतीत हुआ इस मन्दिर में श्री काकभुसुंडीजी का दर्शन होता है |
यह प्राचीन मन्दिर बहुत दिनों तक जीर्ण-शीर्ण दशा में पड़ा था जिसे बस्ती शहर के मशहूर रईस श्री पण्डित जी रामसुन्दरजी पाठक ने लगभग एक लाख रुपया खर्च करके बनवाया मन्दिर में राजभोग की व्यवस्था बहुत ही सुन्दर है |

कैकेयी भवन

यह स्थान मंदिर कोप भवन के पीछे उत्तर दिशा में मौजूद है, इस स्थान पर श्री भरतलाल जी का जन्म रानी कैकेयी के गर्भ से हुआ था। शंकरजी का एक शिवालय है, जिसके अंदर गणेश की एक बहुत ही सुंदर पत्थर की मूर्ति रखी गई है। उक्त मूर्ति अति प्राचीन काल की बताई जाती है। कई लोगों ने इन्हें देखा भी है। इस स्थान की यात्रा का बहुत महत्व है।

गुप्तहरि (गुप्तारघाट)

यही वह परम पवित्र स्थान है जहाँ पर दशरथ कुलभूषण श्री रामचन्द्रजी सरयू में गुप्त होकर अपने दिव्य धाम (साकेत) को चले गये थे| यहाँ गुप्त हरि भगवान का एक प्राचीन मन्दिर है| यहाँ प्रत्येक वर्ष शरद पूर्णिमा को स्नान पर्व का बहुत बड़ा मेला लगता है|

कोप भवन

रानी कैकेयी के क्रोधित होने के बाद इस स्थान का नाम कैकेयी का कोप भवन पड़ा। यह मंदिर हनुमानगढ़ी से जन्मभूमि जाते समय सड़क के दायीं ओर पड़ता है।
मंदिर में महारानी कैकेयी क्रोधित लेटी हैं, पास में ही महाराज दशरथ उदास बैठे हैं, राम और लक्ष्मण उनके बगल में खड़े होकर वन जाने की आज्ञा मांग रहे हैं, कुछ ही दूरी पर मंथरा दासी कुबड़ा कर खड़ी हैं। इस मंदिर के दर्शन के लिए यहां हजारों की संख्या में यात्री आते हैं। मंदिर के वर्तमान महंत श्री चेतरामदास जी महाराज हैं।


सीता रसोई

यह वही प्राचीन स्थान है जहां श्री जानकी जी ने जनकपुर से विवाह कर सबसे पहले रसोई बनाई और अपने ससुर श्री दशरथजी महाराज और चारों भाइयों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को भोजन कराया। इस मंदिर में एक गुफा के अंदर महारानी जानकी जी की सुंदर मूर्ति विराजमान है। और चूल्हा आदि रखा गया है।

प्राचीन जन्मस्थान पर बाबरी मस्जिद बनने के बाद आचार्य पद देवमुरारी दासजी के प्रिय शिष्य श्री स्वामी रामदासजी उर्फ गूदड़ बाबा ने अपने चिमटे को गाड़ दिया और यहीं बस गए। उसके बाद जन्मस्थान नामक एक सुंदर मंदिर का निर्माण किया गया और उसमें भगवान के नव विग्रह की स्थापना की गई। इस स्थान पर श्री गूदड़ बाबा के समय की एक गुदड़ी रखी गई है। जब गुदढ़ी फट जाती है, तो उस पर दूसरा कपड़ा डाल दिया जाता है। जब किसी को इस मंदिर का नया महंत बनाया जाता है तो वही गुदड़ी पहनाकर उसे महंत दी जाती है। मंदिर के वर्तमान महंत श्री हरिदास महाराज हैं।

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